जींद उपचुनाव के नतीजे आ गए हैं. बीजेपी ने ये सीट जीत ली है. मनोहर लाल खट्टर ने अपने विरोधियों को जवाब दे दिया है. प्रदेश में बीजेपी का ग्राफ घट नहीं रहा है. हालांकि इस चुनाव में हारकर हीरो बने है दिग्विजय चौटाला जिन्होंने आईएनएलडी से अलग होकर नई पार्टी का गठन किया था. जींद में जाट मतदाताओं ने दादा ओमप्रकाश चौटाला की जगह पोते को तरजीह दी है. जाट राजनीति करने वालों में अपना नाम दिग्विजय चौटाला ने पहले नंबर पर कर लिया है. जाट बिरादरी की पहले भी पहली पंसद ओम प्रकाश चौटाला का चुनाव निशान चश्मा था. अब चश्मा उतारकर कप प्लेट को थाम लिया है. ये चुनाव निशान दिग्विजय चौटाला की पार्टी का है. जाहिर है कि ये नतीजा कांग्रेस के लिए सबक है, राजनीति को सही चश्मे से देखे ताकि सही आंकलन करे और सही परिणाम हासिल करने का प्रयास करे. बाकी चुनाव तो जनता जनार्दन के हाथ में है. बीजेपी की जीत के कई मायने [caption id="attachment_188191" align="alignnone" width="1002"] चुनाव प्रचार के दौरान कृष्ण मिड्ढा ( बाएं )[/caption] बीजेपी ने ये सीट पहली बार जीती है. 2014 के चुनाव में बीजेपी 2200 वोट से चुनाव हार गई थी. हालांकि मनोहर लाल खट्टर ने सही राजनीतिक दांव चला और कामयाब हो गए हैं. बीजेपी ने स्व. हरिचंद मिड्ढा के पुत्र को कृष्ण मिड्ढा को मैदान में उतारा जो पहले आईएनलडी में थे. इस चुनाव में तीन जाट उम्मीदवार बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे. जिसका फायदा बीजेपी को मिला है. बीजेपी ने गैर-जाट वाली कांग्रेस की लीक पकड़ ली है. बीजेपी ने गैर जाट को सीएम भी बनाया है. जाहिर है कि इसका फायदा बीजेपी को मिल रहा है. क्योंकि शहरी मतदाताओं ने बीजेपी को भरपूर वोट दिया है. हालांकि देहात में जेजेपी को वोट मिला है. इस जीत का श्रेय बीजेपी उम्मीदवार को भी जाता है, जिनके परिवार की लोकप्रियता सब पर भारी पड़ी है. ये परिवार अपने डॉक्टरी पेशे से जनता की सेवा में लगा है. जो इस जीत से स्पष्ट हो गई है. जननायक पार्टी का उदय अपने गठन के एक महीने बाद हुए इस चुनाव में दो युवा लड़को ने अपनी धाक बना ली है .चौधरी ओम प्रकाश चौटाला के परिवार की फूट सबके सामने है. दिग्विजय चौटाला के खिलाफ ओमप्रकाश चौटाला की निजी अपील भी जनता ने नकार दी है. ये दोनों भाई नये जाट लीडर के तौर पर उभर सकते हैं, जिस तरह यूपी में विरासत की लड़ाई अखिलेश यादव ने जीती है, कुछ इस तरह ही दोनों भाई विरासत की लड़ाई जनता के दरबार में लड़ रहे हैं. जिसमें जाट बिरादरी ने दिग्विजय, दुष्यंत चौटाला को तरजीह दी है. हालांकि जननायक बनने में वक्त लग सकता है क्योंकि चुनौती परिवार से और बाहर दोनों तरफ से है. आम चुनाव में इस नई पार्टी का असली इम्तिहान है. खंडित विरोध बीजेपी के लिए फायदेमंद हरियाणा में लोकल बॉडी में जीत का जिक्र प्रधानमंत्री ने तीन राज्यों में हार के जवाब में किया था. तब कांग्रेस ने कहा कि वो तो सिंबल पर नहीं लड़े, लेकिन जींद की जीत से साबित है कि शहरी इलाकों में बीजेपी लोकप्रिय है. हालांकि उपचुनाव में हमेशा तो नहीं लेकिन ज्यादातर सत्ताधारी दल की जीत होती है. राजस्थान में ऐसा ही हुआ है, वहां कांग्रेस ने रामगढ़ उपचुनाव जीता है. हालांकि बीजेपी ने मोदी लहर में हरियाणा में जीत दर्ज की थी. लेकिन अब उसे खंडित विरोध का फायदा मिल रहा है. आईएनएलडी में टूट बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुई है. विरोधी दल में टूट का फायदा मनोहर लाल खट्टर को मिला है. आईएनएलडी में टूट जगजाहिर है. कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान का फायदा भी बीजेपी को मिल रहा है. कांग्रेस इस बात को समझ रही है. इस छोटे राज्य में खेमेबंदी चरम पर है. हर जिले में नेता है और उसका अपना गुट है. कांग्रेस में सुरताल बैठ नहीं रहा है. 10 साल जाट मुख्यमंत्री रहने और जाट उम्मीदवार होने के बाद भी कांग्रेस तीसरे नंबर पर है. कांग्रेस के पास वक्त कम है. अभी भी दरार पाटा जा सकती है. हालांकि पहल कौन करेगा? ये बड़ा सवाल है. कांग्रेस की हार में रार [caption id="attachment_174058" align="alignnone" width="1002"] प्रतीकात्मक[/caption] जींद उपचुनाव में हारने के बाद रणदीप सुरजेवाला ने सधा हुआ बयान दिया है. विजयी उम्मीदवार और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को बधाई दी है. लेकिन हार का ठीकरा पार्टी पर फोड़ दिया है. रणदीप अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं. रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि पार्टी ने जो जिम्मेदारी दी थी उसका निर्वहन करने की कोशिश की है. इसका मतलब ये है कि पार्टी के कहने पर चुनाव लड़ रहे थे. हालांकि जाट बहुलता वाली सीट पर तीसरे नंबर पर पहुंचना अपने आप में कई सवाल खड़ा करता है. रणदीप सुरजेवाला कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता हैं. इससे पहले हरियाणा में दस साल मंत्री थे. प्रदेश पार्टी के मुखिया भी रहे हैं, यूथ कांग्रेस के भी प्रमुख के तौर पर काम कर चुके हैं. इनके पिता भी हरियाणा के बड़े नेता रहे हैं. हाईप्रोफाइल उम्मीदवार फ्लॉप कांग्रेस ने कैथल से विधायक और मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला को मैदान में उतारकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया था. कांग्रेस को लग रहा था कि रणदीप को वॉक ओवर टाइप की जीत मिलने वाली है. रणदीप सुरजेवाला तो लड़ाई से बाहर हो गए, तीसरे नंबर पर पहुंच गए है. जाटलैंड में रणदीप जाटों की पहली पंसद नहीं बन पाए है. रणदीप की राहुल गांधी से करीबी की वजह से पूरे देश के कांग्रेसी कार्यकर्ता जींद पहुंच कर नंबर बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे. सोशल मीडिया में जींद पहुंचकर रणदीप सुरजेवाला का प्रचार करते हुए नेता और कार्यकर्ता फोटो डालकर धन्य समझ रहे थे. कांग्रेस में मचेगा बवाल इस हार के बाद कांग्रेस में बवाल मच सकता है. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कैंप हावी होने की कोशिश कर सकता है. वैसे भी हुड्डा और संगठन के बीच तकरार है. अशोक तंवर को हटाने की मुहिम फिर शुरू हो सकती है. हालांकि जींद उपचुनाव में गैर जाट उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है. इसलिए कांग्रेस को फैसला करना है कि हरियाणा की राजनीति में किस ओर जाना है. गैर जाट की राजनीति में बीजेपी ने पैठ बना ली है. इसलिए कांग्रेस को दलित को साधने की जरूरत है. जिनकी आबादी जाटों के बाद दूसरे नंबर पर है. नए प्रभारी की जिम्मेदारी बढ़ेगी हरियाणा के नए प्रभारी गुलाम नबी आजाद की जिम्मेदारी बढ़ गई है. इस उपचुनाव से कांग्रेस खड़ी होने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मंसूबे पर पानी फिर गया है. नए प्रभारी को सभी खेमे को एकसाथ रखने की चुनौती है. हालांकि गुलाम नबी आजाद का अनुभव बहुत है. इसलिए ये उनके लिए नामुमकिन काम नहीं है.
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