महाभारत के युद्ध में धर्मराज युधिष्ठिर ने गुरु द्रोणाचार्य के वध के लिए असत्य का सहारा लिया था. उन्होंने गुरु द्रोण से धीमी आवाज में झूठ बोला था कि अश्वत्थामा मारा गया जबकि द्रोणपुत्र अश्वत्थामा जीवित था और जो मारा गया वो एक हाथी था. धर्मराज का वो असत्य आधा सच और आधा झूठ था. जिसने पूरे युद्ध की दशा-दिशा ही बदल कर रख दी थी. लेकिन आज के दौर में राजनीतिक युद्ध इससे भी एक कदम आगे लड़ा जा रहा है. यहां आधे या पूरे सच की जरूरत नहीं है और न ही जरूरत किसी झूठ को धीमे से बुदबुदाने की है बल्कि तेज आवाज में आरोपों को सही साबित करने की होड़ सी मची हुई है. बदलते दौर में खुद को पाक-साफ करने की जिम्मेदारी उस शख्स की हो जाती है जिस पर आरोप लगे होते हैं. पूर्व रक्षा मंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर भी इसी स्थिति से गुजरे क्योंकि उनकी बीमारी का हालचाल जानने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जनता को दूसरा मर्ज बता रहे हैं. ये हिट एंड रन की राजनीति का एडवांस्ड वर्ज़न है जिसका राहुल गांधी पर बेहद सतर्कता और खूबसूरती से इस्तेमाल करने का आरोप लग रहा है. पहले 'हिट एंड रन' की राजनीति के आरोप दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर लगते थे लेकिन अब ये आरोप कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर लग रहे हैं. दरअसल, कोच्चि में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल ने राफेल पर दूसरा राग छेड़ा. उन्होंने कहा कि पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा है कि राफेल की नई डील से उनका कोई लेना देना नहीं है. इसके जरिए राहुल ने एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की. एक तरफ उन्होंने मोदी सरकार पर निशाना साधा तो दूसरी तरफ उन्होंने मनोहर पर्रिकर को भी कठघरे में खड़ा कर दिया. राहुल ने राफेल पर किसी नए खुलासे की तरह पर्रिकर से हुई मुलाकात का इस्तेमाल ठीक उसी तरह किया जिस तरह गुरू द्रोणाचार्य को मारने के लिए अश्वत्थामा का इस्तेमाल किया गया था. दरअसल पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से उनकी सेहत का हाल जानने के लिए राहुल ने शिष्टाचार मुलाकात की लेकिन बाद में राहुल ने मनोहर पर्रिकर के साथ 'हिट एंड रन' का काम किया. राहुल का ये 'अर्ध-सत्य' पर्रिकर को भीतर तक आहत कर गया. मनोहर पर्रिकर ने राहुल को पत्र लिखा और कहा कि आपने मुलाकात को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया और मुलाकात के पांच मिनटों के दौरान रफाल के बारे में कोई बात नहीं हुई. पर्रिकर के पत्र के बाद राहुल ये सफाई दे रहे हैं कि उन्होंने राफेल और पर्रिकर को लेकर वही बातें कहीं जो कि सार्वजनिक पटल पर हैं. सवाल उठता है कि सार्वजनिक पटल की बातों को कहने के लिए राहुल ने पर्रिकर से मुलाकात का हवाला क्यों दिया? ये वाकई राजनीति के उस स्तर का संकेत है जो आने वाले समय में स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा भी है. ऐसी घटनाएं भविष्य में शिष्टाचार मुलाकातों को भी संदेह और अज्ञात भय से ग्रसित कर सकती हैं. देश के स्वस्थ लोकतंत्र की यही खूबी है कि संसद के सदन में विचारों के मतभेद के बावजूद सदन के गलियारों में मनभेद नहीं होता है. सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे की खूबियों की तारीफ भी करता है. राजनीतिक विरोध सिर्फ सत्ता हासिल करने के लिए नहीं बल्कि देश की मजबूती के लिए होता है. लेकिन राजनीतिक हित साधने के लिए हिट एंड रन का स्टाइल सोशल मीडिया के दौर में कारगर साबित हो रहा है. लेकिन इसका इस्तेमाल करने वालों को ये जरूर सोचना चाहिए की काठ ही हांडी सिर्फ एक बार चढ़ाई जा सकती है. केजरीवाल की स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स को अपनाने वाले राहुल गांधी ये भूल रहे हैं कि इसी तरह के 'हिट एंड रन' मामलों की वजह से अरविंद केजरीवाल पर मानहानि के इतने मुकदमे लगे थे कि कोर्ट की पेशियों में न मालूम कितने कैलेंडरों की तारीखें बीत जातीं. तभी केजरीवाल ने अपने लगाए आरोपों को साबित न कर पाने की वजह से ही माफी-यात्रा शुरू कर जैसे-तैसे मानहानि के मुकदमों से पीछा छुड़ाया. हालांकि ऐसे ही मानहानि के मुकदमे से राहुल भी मध्यप्रदेश में तब बाल-बाल बचे जब उन्होंने प्रचार के वक्त तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान के बेटे का नाम पनामा पेपर्स से जोड़ा था. हालांकि बाद में उन्होंने भी माफी मांगने में देर नहीं की. [caption id="attachment_182654" align="alignnone" width="1002"] Photo Source: @INCIndia[/caption] 'हिट एंड रन' को केजरीवाल का सक्सेस फॉर्मूला माना जाता है. केजरीवाल ने सीडब्लूजी गेम्स घोटाला और रॉबर्ट वॉड्रा पर जमीन घोटाले के आरोप लगा कर न सिर्फ सुर्खियां बटोरीं बल्कि दिल्ली की सत्ता भी हासिल की. बाद में उन्होंने नोटबंदी को भी एक लाख करोड़ से ज्यादा का घोटाला बताया था. लेकिन उनके खुलासे का असर नहीं दिखा. अब केजरीवाल भी ये जान चुके हैं कि आरोपों के ‘हिट एंड रन’ में रिस्क ज्यादा है. तभी वो अपनी रणनीति में बदलाव ला चुके हैं. अरविंद केजरीवाल अब अपने बयानों से पीएम मोदी पर सीधा हमला नहीं कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल मोदी विरोध के बावजूद दिल्ली की जनता से ये कहते हैं कि, 'अगर आप लोग अपने बच्चों से प्यार करते हैं तो मोदी को वोट मत दीजिए'. शायद ये केजरीवाल के राजनीतिज्ञ रूप से परिपक्व होने की निशानी है लेकिन केजरीवाल की 'हिट एंड रन' की राजनीति को हाईजैक करने वाले राहुल ये भूल रहे हैं कि अश्वत्थामा भी महाभारत में अमर था. ऐसे में उसे युधिष्ठिर की तरह बार-बार मारा नहीं जा सकता है.
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